Friday, September 23, 2016

युद्ध के विरुद्ध ( AGAINST WAR )

युद्ध के विरुद्ध
+++++++++++++++
आज २३ सितम्बर है | आज से ५१ बरस पहले १९६५ को आज ही की तारीख दूसरे कश्मीर युद्ध के नाम से भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध का का औपचारिक विराम हुआ था | जब दोनों देशो ने यू एन ओ ने २२ सितम्बर को युद्ध विराम के प्रस्ताव को स्वीकार किया था | उरी पर शर्मनाक आतंकी हमले के बाद जब देश के भीतर पाकिस्तान को युद्ध कर ऐसे खतरों के जड़ से मिटा देने के जोर शोर से वकालत सोशल और इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर की जा रही है | यह याद करना लाजमी होगा कि २३ सितम्बर को युद्ध विराम पर क्या दृश्य तब देखा गया था | तब की रिपोर्ट बताती हैं “जब युद्ध का अंत हुआ तब टैंक गरजना बंद हो गये थे ..बंदूके नीची हो गयी थीं ..लेकिन कुछ दिनों पहले जहाँ खेत लहलहा रहे थे वहां सिर्फ राख थी बस्तियों की जगह सिर्फ लाशें पड़ी थीं |”इस या हर युद्ध में यह दृश्य आम होता है | नीचे राख और गुबार में बिखरी हुई लाशें और ऊपर गिद्ध-चील-कव्वों से भरा आसमान | धर्मवीर भारती के के शब्दों में यह ‘अंधा-युग’ का अवतरण होता है |
“तो आगे आने वाली सदियों तक
पृथ्वी पर रसमय वनस्पति नहीं होगी
शिशु होंगे पैदा विकलांग और कुष्ठग्रस्त..
गेहूं की बालों में सर्प फंफकारेंगे
नदियों में बह-बह कर आएगी पिघली आग।“
यह युद्ध में कौन जीतता है या कौन हारता है ,यह सवाल नहीं है | हर ऐसे युद्ध में अधिकारों का अंधापन ही जीतता आया है | और दोनों और जो शुभ होता है सुन्दर और कोमलतम होता है | वह हार जाता है | न्याय या धर्म युद्धों का अंत भी अंध प्रतिशोध की बर्बर गुफा में होता है | जैसे ‘अंधा-युग’ में मणि छीनने से बने मस्तक पर रिसते हुए घाव से अभिशप्त अश्वत्थामा कहता है
“वध मेरे लिए नहीं रही नीति
वह है अब मेरे लिए मनो ग्रन्थि” |
युद्ध सभ्यता का विलोम है | और हमे सभ्यता या युद्ध में किसी एक चुनाव करना होता है |जहाँ से सभ्यता समाप्त होती है युद्ध की शुरुआत होती है | सभ्यता की शुरुआत ही तब से मानी जाती है जब आदि मानव ने पत्थर की बजाय शब्दों का सहारा लिया होगा | युद्ध उसी शब्द की सत्ता के स्थान पर हथियार की सत्ता की प्रतिष्ठा है |बोनापार्ट जैसे योद्धा ने भी अंतत: युद्ध को बर्बर का व्यवसाय ही कहा है | रूस के एंटी गनर रोजन पोदोवेरोव का कहा याद आता है..“मैंने युद्ध से कुछ नहीं सीखा |युद्ध मनुष्यों के लिए नहीं अपराधियों के लिए है,जो हत्या लूट बलात्कार करते हैं |”
युद्ध इस तरह से सभी विकल्प का अंत है | महामंदी,महामारी और नरसंहार से शापित प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों को छोड़ भी दें तो भी आधुनिक राष्ट्र राज्यों में हुए सबसे लम्बे समय तक चले ईरान –ईराक युद्ध , अरब फिलीस्तीन युद्ध का अंत भी सिफर में हुआ है | युद्ध के गर्भ से विनाश और युद्ध का ही जन्म होता है और इस तरह से युद्ध का सिलसिला बना ही रहता है | भारत पाक के सम्बन्ध में ही देखे तो १९४७ फिर १९६५ फिर १९७१ फिर १९९९ यानी एक असमाप्त श्रृंखला | इतिहास में देखे तो अब तक के राष्ट्र राज्य के सारे युद्ध एक महिमा मंडित सामूहिक ह्त्या या सामूहिक आत्महत्या के रूप में अंतहीन कब्रगाह ही सिद्ध हुए है | लम्बे समय तक चलने वाले इन युद्धों में शासकों को भले सत्ता हासिल हुई हो लेकिन जिन्होंने इस युद्ध में अपना जीवन ,अपने परिजन गवां दिए उन आम जन को क्या हासिल हुआ ? इन युद्धों में अधिकाँश मारे गये लोग किसान मजदूर कामगार थे जो सैनिक मारे गये वे भी अधिकाँश इन्ही के परिवारों से आये थे युद्ध का सबसे बड़ा नुकसान इसी जनता को उठाना पड़ा लेकिन युद्ध का मुनाफा बिसात बिछाने वाले प्रभु वर्ग को मिला | युद्ध भले ही कितने महान नारे तले लड़ा जाये जैसे वार अगेंस्ट टेरर ... या इनफिनिट जस्टिस उसके मूल में कोई आर्थिक वर्गीय स्वार्थ ही काम कर रहां होता है | हम इसे युद्ध का अर्थशास्त्र भी कह सकते हैं | राष्ट्र राज्यों के आधुनिक युद्ध में तात्कालिक और बाहरी कारण कुछ भी हो आतंरिक कारण हमेशा ही आर्थिक होता है | पहले और द्वितीय विश्व युद्ध तो सीधे सीधे औपनिवेशिक मुनाफों की टकराहट और बाज़ार पर वर्चस्व का परिणाम थे | हाल के दशकों में अमेरिका का ईराक,अफगानिस्तान में तब का हमले हों या आज जो जो सीरिया,ईराक में हो रहा है उसमे “तेल“ की सर्वाधिक अहम् भूमिका है | यह जानना बेहद दिल चस्प होगा कि आधुनिक बाज़ार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी हथियारों के बाज़ार की है |जिसका सबसे बड़ा भागीदार अमेरिका है | संजय लीला भंसाली युद्ध और हथियार के इस बाज़ार को अपनी फिल्म मोहन- ज़ोदारों में तब की सिन्धु सभ्यता तक ले जाते हैं जहाँ एक नगर राज्य अपने पड़ोसी नगर राज्य से युद्ध के लिए अपनी नदी के सोने के बदले विदेशियों से हथियारों का सौदा करता है | भले यह कहानी लगती हो लेकिन आज के संदर्भो में यह सच्चाई है |जहाँ युद्ध के पीछे हथियारों के कारोबारी जिन्हें मर्चेंट ऑफ़ डेथ कहा जाता है चालक सीट पर होते हैं | माइकल मूर की फिल्म नाइन इलेवन फारेनहाईट में जिसका संकेत करती है | यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं होगा कि बुश की जिस सैन्य सामग्री की कम्पनी में पार्टनर शिप रही उसका टर्न ओवर में नाइन इलेवन के हमले के बाद जबर्दस्त उछाल देखा गया | युद्ध और हथियारों के बाज़ार का खुलासा स्टाक होम्स इंटरनेश्नल पीस रिसर्च इंस्टीटयूट यानी SIPRI की रिपोर्ट से होता है जिसके अनुसार २०११ में हथियारों की १० बड़ी कम्पनियों ने २०८ बिलियन डालर का कारोबार किया जो इनके एकाधिकार का प्रमाण है | खाड़ी युद्ध में दोनों तरफ से जो दागी जाने वाली मिसाइलें इन्ही की थीं |खाड़ी युद्ध के बाद भय का दोहन करने वाली भी यही रहीं | SIPRIकी रिपोर्ट के अनुसार २००२ से २०११ के बीच इनके कारोबार में ५१% की बढ़ोत्तरी देखी गयी | सवाल यह है यदि हम लगातार सभ्य होते जा रहे हैं तो फिर इन कम्पनियों का मुनाफा किस के दम पर बढ़ रहा है ? SIPRIकी रिपोर्ट के अनुसार यह जानना भी कम दिल चस्प नहीं है कि २०११ -२०१४ में हथियारों और सैन्य सामग्री के पांच सबसे बड़े निर्यातक देश इस क्रम से थे – अमेरिका , रूस ,चीन , जर्मनी और फ्रांस | ये पृथ्वी के सबसे बड़े सभ्य देश है और आये दिन दुनिया को सभ्य बनाने की वचन बद्धता दोहराते रहते हैं लेकिन सभ्य बनाने का इनका उपकरण बड़ा दिलचस्प है यानी विनाश का हथियार | और इसके उलट हथियारों के पांच बड़े आयातक देश इस क्रम से हैं ..भारत ,सऊदी अरब ,चीन ,सयुंक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान |
यानी भारत और पाकिस्तान सबसे बड़े हथियार और सैन्य सामग्री के आयातक देश हैं | सोचने लायक बात है कि दोनों के बीच युद्ध में मुनाफा कौन पीटेगा | कारगिल युद्ध के बाद भारत ने हथियारों की सबसे बड़ी खेप का सौदा किया था | आज भी सीरिया में चल रहे युद्ध में हथियार देखे जा सकते हैं | गौर तलब है कि इन दिनों चीन पाकिस्तान के लिए हथियारों और सैन्य सामग्री का सबसे बड़ा बाज़ार है | यदि भारत –पाक युद्ध होता है तो सबसे बड़ा लाभ उसके इसी बाज़ार को होता दिखता है |
ज़रा सोचिये हथियारों का कभी कोई विज्ञापन किसी प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया में नहीं आता | फिर हथियारों की इन कम्पनियों का विज्ञापन कैसे होता है ? उत्तर है युद्ध | याद करिये किस तरह से खाड़ी युद्ध को लाइव दुनिया भर में दिखाया गया था | जहां मिसाइलो की आतिश बाज़ी भय के साथ रोमांच भी भरती थी | इसलिये हथियारों और सैन्य सामग्री के सौदागर की रूचि सदा से ही युद्ध में रही है |वही उसका विज्ञापन है |इसलिए अपने देशों में ये सौदागर राजनेताओ के साथ मिलकर एक गठजोड़ का निर्माण करते हैं जिसे आइजेनहावर ने मिलेट्री-इंड्रस्ट्री काम्प्लेक्स से सम्बोधित किया था | ऐसे ही हथियारों के दलाल ‘WOR DOGS’ नामक फिल्म में देखे जा सकते हैं जो अफगान में हथियार भेजते हैं | कहने का अभिप्राय यह है कि युद्ध में मुनाफा इसी वर्ग का होता है | हैरानी नहीं कि सोशल मीडिया और मीडिया में इन्ही के इशारों पर भय और युद्ध का उन्माद रचा जाता हो | जिसे आसानी से राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयहितो से जोड़कर पवित्र मूल्य बना दिया जाता हो | रक्षा का बजट इस तरह से बढ़ता जाता है और शिक्षा स्वास्थ्य का हिस्सा घटता जाता है | अगर अखबार की खबर पर यकीन करें तो  उड़ी हमले के बाद भारत ने  फ्रांस से  रफाल लड़ाकू विमान खरीदने जा  रहा है | एक रफाल  लड़ाकू विमान के  लिए १६३८ करोड़ रूपये खर्च किये जायेंगे और भारत ऐसे ३६ लड़ाकू विमान खरीदेगा | पाकिस्तान की हालात तो इस लिहाज से बड़ी ही त्रासद है जो स्कूल अस्पताल और जनता के जरूरी सहूलियतों को दांव पर लगाकर  चीन और अमेरिका से हथियार और सैन्य सामग्री खरीदता है |
यहाँ यह निर्विवाद है कि हमे अपने सीमाओ और अपने देश वासियों के हितो की रक्षा सर्वोपरी प्राथमिकता से करनी चाहिए , करनी होगी | राष्ट्र की रक्षा के लिए सभी जरूरी करने होंगे लेकिन यह याद रखते हुए कि युद्ध अंतिम विकल्प है और इसे सिर्फ आत्म रक्षा में ही उपयोग में लाया जाना चाहिये |आतंक का सामना बगैर किसी मुरव्वत कड़ाई और मुस्तेदी से करने की जरूरत है लेकिन यह याद रखते हुए कि आंतक पड़ोसी देश की एक रणनीति है और हम इसकी कीमत युद्ध के रूप में चुकायें ये कहीं से अकलमंदी नहीं होगी | साथ ही यह तथ्य भी ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत- पाकिस्तान परमाणु शक्ति सम्पन्न देश हैं | और युद्ध में किसी भी तरफ से इसके प्रयोग का अर्थ होगा भारत चीन और पाकिस्तान में सभ्यता का अंत | आज से लगभग ७० बरस पहले हिरोशिमा और नागासाकी में जो नरसंहार हुआ उससे कई गुना अकल्पनीय नर संहार की तीव्रता इन परमाणु हथियारों में है | दिसंबर २०१३ में इंटरनैशनल फिजिशंस फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वॉर (आईपीपीएनडब्ल्यू) द्वारा जारी एक रिपोर्ट 'परमाणु अकाल : दो अरब लोगों को खतरा' में कहा गया है कि यदि भारत पाकिस्तान में एक और युद्ध हुआ और उसमें परमाणु हथियारों का प्रयोग किया गया तो शायद पृथ्वी पर मानव सभ्यता का ही अंत हो जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक, परमाणु युद्ध वैश्विक पर्यावरण और कृषि उत्पादन पर इतना बुरा प्रभाव डालेगा कि दुनिया की एक-चौथाई जनसंख्या यानी दो अरब से ज्यादा लोगों की मौत हो सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान के साथ ही चीन की भी पूरी की पूरी मानवजाति खत्म हो जाये |इस चेतावनी को ध्यान में रखते हुए आंतकवाद का अंत करने की सामरिक रणनीति तैयार की जानी चाहिये | साहिर लुधियानवी की यह नज्म आज के दौर में भी बड़ी मौजू है –
“खून अपना हो या पराया हो
नस्ल ए आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक में हो या हो मगरिब में
अम्न ए आलम का खून है आख़िर !
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे-तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
जीस्त फाकों से तिलमिलाती है !
टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें
कोख धरती की बांझ होती है
फतेह का जश्न हो या हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है !
जंग तो खुद ही एक मसला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
खून ओर आग आज बरसेगी
भूख ओर एहतियाज कल देगी !
इसलिए ए शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप ओर हम सभी के आंगन में
शम्मा जलती रहे तो बेहतर है !”
||हनुमंत किशोर||
चित्र भारत पाक युद्ध २३ सित १९६५ सौजन्य साभार गूगल सर्च