उन्हें देखकर और
उनके बारे में सुनकर लगता था कि वे मानो मृत्युंजय हैं | वे पिछले कई वर्षों से
डायलिसिस पर थे और कई दफे दिन में ४ से ६ बार उन्हें डायलिसिस लेनी पड़ती | कई बार लगा कि मृत्यु उन्हें अब
परास्त कर ही देगी |हर बार जिंदगी के प्रति
अपनी मोहब्बत ,अपनी जिजीविषा से वे मृत्यु को छकाते रहे | उनसे मिलने वाले पाते कि
उनकी हँसी उनकी मुस्कान वही जवानी वाली है | वे इस विवश दशा में भी आयोजनों में
शामिल होते और लिखना तो मानो बीमारी की
पकड़ से बाहर था | मेरी ज्यादातर मुलाकात प्रगतिशील लेखक संघ और ऐसे ही कार्यक्रमों
में हुई थी लेकिन उन औपचारिक मुलाकातों में भी उनकी आत्मीयता की उष्णता आज भी
अनुभव होती है |
किन्तु इस बार
ज़िन्दगी का एक बड़ा आशिक मौत से हार गया |
कमला प्रसाद जी
के बाद साल भर ही में भगवत रावत का ना होना किसी दुर्भाग्य
से कम नहीं है |आम जीवन और आम आदमी उनकी कविताओं में विशेष हो उठता था | जो आदमी
अपनी विशिष्टता से बेखबर पृथ्वी को कच्छप की तरह अपनी पीठ पर धारण किये हुए है, वह
उनकी अनहद नाद जैसी कविता में विशेष हो मूर्तमान है
उनके शब्द और
विचार हमारे दिल और दिमाग को रोशन करते
रहेंगे | उन्हें उन्हीं की पंक्तियों
में याद करते हुए उन्हें नमन .....
हमने उनके घर देखे
घर के भीतर घर
देखे
घर के भी तलघर
देखे
हमने उनके डर
देखे ....