मलाला >>>>शक्ति का नया अवतरण...
( स्त्री शिक्षा के अधिकार के लिए कठमुल्लेपन के विरुद्ध संघर्ष )
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मालाला की उम्र अभी मेरे सपनों से भी बहुत कम है ...१४ -१६ साल क्या होते हैं किसी की जिंदगी में | इस उम्र में तो मुझे शायद फुल पेंट पहनने का सहूर भी नहीं आया होगा |लेकिन इस बाली उम्र में ही मलाला ने अपने अकेले बूते दिखा दिया कि यदि दिल में हौसले की उड़ान हो तो एक निहत्थी बच्ची हथियारबंद तालिबान जैसे गिरोहों के भी छक्के छुड़ा सकती है |दुनिया की बड़ी से बड़ी आततायी ताकत एक मासूम सपने को भी परास्त नहीं कर सकती |मलाला हमें मलाल है कि तुम्हारे सिर और तालिबानी गोली के बीच हम कहीं नहीं थे| तुमने १४ बरस की उम्र में जो कर दिखाया उसेके लिए हमें १४ सदियाँ भी कम थी |
१८८० में पख्तून फौजो की और से अंग्रेज सेना के खिलाफ लड़ने वाली अफ़गानिस्तानी लड़ाकू शायरा मलालाई की नाम पर जाने क्या सोचकर जियायुद्दीन युसुफजई ने १२ जुलाई १९९१७ को जन्मी अपनी लड़की का नाम मलाला रखा लेकिन १५ साल की नाकाफी उम्र में ही मलाला ने मज़हबी कठमुल्लेपन से लौहा लेकर अपने नाम को सच कर दिखाया |
जिस उम्र में बच्चे पढाना सीखते हैं मलाला ने स्वात घाटी के खूंखार तालिबान की फासिस्ट शाही से लड़ना सीखा |
सितम्बर २००८ में पेशावर के प्रेस क्लब में एक शेरनी की तरह दहाड़ते हुए मलाला ने कहा " तालीम के मेरे बुनियादी हक को छीनने की हिम्मत तालिबान कैसे कर सकता है |"
और मलाला ने तालिबानी फरमान के खिलाफ जाते हुए अपना स्कूल और अपनी पढाई जारी रखी|" गुल मकई " के नाम से लेख लिखे |जिसमे औरत के अधिकार की हिमायत की |आतंक की फिज़ा में यह सवाल उछाला कि " स्कूल की इमारत को सज़ा क्यों दी जा रही है | स्कूल तो बंद हैं फिर उनमे आग क्यों लगायी जा रही है |"
मलाला ने कहा कि वो जानती है कि कभी भी उसके चेहरे पर तेजाब फेंका जा सकता है |... कीमत चुकानी पड़ेगी यह जानते हुए भी मलाला ने अपना ब्लाग शुरू किया जिसमे औरत को तालीम के अधिकार की वकालत की |अखबारों में इस विषय पर लेख लिखे | मलाला ने पूरे दम के साथ कहा...
मुझे हक है खेलने का
मुझे हक है गाने का
मुझे बोलने का हक है
मुझे बाजार जाने का हक है |”
..........स्त्री विरोधी और मर्द वादी सोच के मारे हुए तालिबान को एक लड़की की जायज बात अपने खिलाफ हेकड़ी लगी और चेतावनी के बावजूद भी जब मलाला ने अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद करना जारी रखा तो ९ अक्टूबर को स्कूल बस से उसे उतारकर उसके सिर में गोली मार दी गयी | जो आज भी सिर से होती हुई उसकी रीढ़ में जा धँसी |
|लेकिन एक मलाला के साथ दुनियाभर में दूसरी कई मलाला उठ खड़ी हुईं और देखते देखते मलाल आतंक के खिलाफ औरत और इन्साफ का प्रतीक बन गयी | सारी दुनिया में प्रदर्शन हुए | प्रार्थना हुई | लहर पर लहर उठती गयी |संयुक्त राष्ट्र वैश्विक शिक्षा के के विशेष दूत गार्डन ब्राउन ने तमाम बच्चो की स्कूली शिक्षा की वकालत करते हुए एक आंदोलन शुरू किया और नारा दिया " मैं हूँ मलाला |"
मलाला शक्ति का नया अवतरण है |हमारे समय में दुष्टता और अत्याचार के प्रतिरोध और विनाश के लिए शक्ति किसी ...पवित्र कारागार में समयातीत अस्त्र शस्त्र के साथ प्रकट नहीं होगी | बल्कि साहस ,शौर्य, तर्क और जिजीविषा से युक्त होकर ; किसी तालिबानी या खाप पंचायत से आतंकित अर्ध सामंती समाज में या बर्बर विकास से त्रस्त किसी आदिवासी इलाके में भंवरी देवी, मेधापाटकर , महाश्वेता देवी या मलाला के रूप ही अवतार लेगी |
........................................................... वे शक्ति के ये नये पीठों का सृजन करेंगी और मर्दवादी सोच के महिषासुर का वध करेंगी | उनके हौसले ,हिंसा और प्रताडना के रक्तबीजों को समूल समाप्त कर देंगे | समाज में शिवत्व की की स्थापना प्रतिरोध और परिवर्तन की इन आधुनिक देवियाँ से ही संभव होगी |
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( इस परिघटना के कुछ सामाजिक और ऐतिहासिक कारण... )
मनुष्य के रूप में मालाला के अधिकार से आतंकित तालिबान के कई रूप हैं| सरहदें बदलती हैं तो नाम और झंडे बदल जाते है किन्तु उनका चरित्र वही रहता है यानि स्त्री को गुलाम बनाये रखना |
हम अपने यहाँ इनकी पहचान विभिन्न स्वयम्भू सेनाओं और बिरादरी की पंचायतों (खौफ?) के रूप में कर सकते हैं |
अर्ध सामंती और खेतिहर समाज में कट्टर तत्व स्त्री की शिक्षा से इसलिए आतंकित रहते हैं कयोंकि शिक्षित स्त्री संपत्ति और सत्ता पर पुरुष के वर्चस्व के लिए एक चुनौती बन जाती है | लिहाजा धर्म ,संस्कृति और परम्परा के नाम पर वे स्त्री की शिक्षा और उसकी रुचियों का नियमन करने लगते हैं | उनकी पंचायते फरमान सुनाती हैं कि औरत पढ़े मगर सीता महात्मय से आगे नहीं पढ़े | जींस नहीं पहने या मोबाईल पर बात नहीं करे | कुल मिलाकर ये सत्ता और संपत्ति पर एकाधिकार का षड्यंत्र है | इसलिए समाज के अर्ध सामंती ढांचे का टूटना स्त्री मुक्ति की पहली शर्त है |
...जहाँ स्त्री या तो देवी है या दासी ...बस आवश्यकता और इच्छा से संचालित मनुष्य नहीं है |वह यहाँ दोयम होती है | वंशधर की रूप में बेटे की कामना के आगे स्त्री की भ्रूण हत्या कर दी जाती है | हरियाणा जैसे राज्यों के बिगड़ते लिंगानुपात को इस तरह से समझा जाना चाहिये|
किन्तु अर्ध सामंती ढाँचे से आगे पूंजीवादी समाज में भी स्त्री आज़ाद, सम्मानित या सुरक्षित होगी यह समझना सिर्फ आत्म छल होगा | यद्यपि पूंजीवादी समाज स्त्री को शुरूआत में शिक्षा और स्वतंत्रता के साथ संपत्ति पर अधिकार देता हुआ दिखाई देता है | लेकिन वहाँ एक चालाकी के साथ इस तरह उसका अनुकूलन कर दिया जाता है कि वह पुरुषों के लिए एक सुविधा में तब्दील होकर रह जाती है | देह और यौन की आजादी वेश्यावृत्ति की पृष्ठभूमि बन जाती है |देवदासी यहाँ यौन दासी हो जाती है | फैशन और सौंदर्यशास्त्र का ऐसा व्याकरण तैयार किया जाता है कि स्त्री एक सजावटी वस्तु में बदलकर रह जाती है |यहाँ तक कि उसका मातृत्व जैसा बुनियादी हक भी उससे छीन लिया जाता है |और कमाल ये कि ये सब करते हुए स्त्री को यही लगता है कि वो अपनी आज़ादी को जी रही है | अर्ध सामंती समाज में जहाँ वह जौहर या सती होने को अपने स्त्री होने की पराकाष्ठा समझती है वहीँ पूंजीवादी समाज में पुरुष जैसा हो जाने को अपने स्त्री होने की सार्थकता |
वस्तु होती हुई स्त्री को पूँजीवाद में नयी चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा |
अर्ध सामंती और पूंजीवादी दोनों समाजों में स्त्री को उसके मनुष्य होने के अधिकार के लिये अभी लंबी लड़ाई लड़नी है | ज़ाहिर है मलाला के रूप में शक्ति का नया अवतार आगे भी जारी रहेगा .... समय आ गया है कि अब हम अपनी भूमिका निर्धारित कर लें ....अन्यथा कबाड़ खाने के हमारी जगह सुरक्षित है |.........
हनुमंत किशोर ....
hanumant sir... is article ko mai shabd shilpi. jan ke ank ke liye le liyta hai with pics also.. thank u somuch..... for ur appriciationss.....
ReplyDeleteregards.. anil ayaan.,editor in chief ,shabd shilpi...
its ok
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