Friday, May 18, 2012

light polloution.

                           
           कातिल उजाला ..danger  of light polloution.

               दीपावली में आसमान जमीन पर उतर आया था | सितारे हमारे घर-द्वार-सड़को पर जगमगा उठे थे  | लेकिन दीपावली के अगले दिन तो  उन्हें आसमान में  वापस लौट जाना चाहिये था | जहां उनकी असली जगह थी | वे शायद लौट भी गये हों किन्तु जब नज़र उठाकर उपर देखा तो वे आसमान में अपनी जगह नही थे | फिर और अगले दिन भी नही थे | तो क्या वे धरती से आसमान के सफ़र में  रास्ता भटक गये थे ? 
बचपन में  दादी-नानी की कहानी के वक्त का रात को सितारों से सजा आसमान याद आता है | खुसरो की पहेली याद आती है एक थाल मोतियों से भरा सबके सर पर औंधा रखा , थाल वो उलटा फिरे मोती लेकिन एक ना गिरे | साफ़ आसमान में बात करते हुए सितारे कितना कुछ सिखा देते थे | हर सितारे की अपनी एक कहानी थी हर सितारा या तो राजकुमार था या सप्तऋषि | शाम को सबसे पहले नुनवा दिखता था मुकुट में जड़ा जगमग हीरा और सुबह होने के  पहले पश्चिम में  शुकवा अपनी रंगीन छाया के साथ | ध्रुव तारे को  देखकर हम दिशा के  साथ पिता की गोद भी याद कर लेते थे और टूटे  हुए तारे को देखकर मन्नत भी मांग लेते थे |ये सब गुजरे ज़माने  की बात है अब | आसमान अब  भी वहीँ हैं ...हमारी लालसा भी बस सितारे आसमान में  नहीं दिखते उन्हें हमारी अपनी रोशनी ही निगल गयी |
अब बच्चों को सितारों से खिला आसमान दिखाना हो तो उन्हें शहर से दूर किसी  जंगल या हिल स्टेशन में  ले  जाना होता है |
शहर के कातिल उजाले ने हमारे सितारों का कत्ल कर दिया है | 
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 कुछ दिनों पहले जबलपुर के  स्थानीय अखबार  में यह  खबर  छपी थी कि कैंट इलाके में रहने वाली एक महिला ने अदालत में इस बात की गुहार लगायी कि वह कई सालों से  घर के पास लगी  हाई मास्ट लाईट के कारण सो नहीं पायी है क्योंकि रात को सोने लायक अँधेरा नहीं हो पाता |
             बात उतनी हल्के में लेने लायक नहीं थी जितनी हल्के लोगों ने ली | शायद इसलिए कि हम अब इस तरह के प्रदूषण और खतरे को तरक्की का खामियाजा मानकर भुगतने के  लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुके हैं | साथ ही इसका कोई विकल्प भी हम सामने नहीं पाते | इसलिए प्रकाश के इस प्रदूषण को भी हम प्रदूषित हवा  प्रदूषित पानी प्रदूषित विचार के साथ सोख लेंगे या यूँ कहें सोख ही रहे हैं |
                हम में  से कितने है जो वर्षों से  विद्युत प्रकाश की चकाचौंध के कारण तारों से खिला  आसमान नहीं देख पाये हैं |सुबह का दिपदिपाता सुकवा तारा भी अब नज़र नहीं आता | चाँद दिखता तो है पर अपने बाराती तारों के बगैर ..तन्हा | यदि आकाशगंगा का दूधिया सोंदर्य देखना हो तो शहर से दूर जंगल जाना होगा जहाँ इंसानी रोशनी का विकराल जाल आकाश में न छितराया हो जो रात की जुनहइया  को खा जाता है |महानगरी  प्रकाश की जगमगाहट के रेले में रात की सारी  खूबसूरती नष्ट हो गयी है |
                         आज से कोई सवा सौ साल पहले जब थामस अल्वा एडिसिन ने  विद्युत वल्ब बनाकर  इंसान को बाहर के अँधेरे से लडने का शानदार तोहफा  दिया था , तो उसे भूलकर ही ख्याल  नहीं आया होगा कि इंसान इस खोज का  इतना  भयंकर इस्तेमाल   करेगा कि उजाला ही उसका दुश्मन बन जायेगा | रौशनी को वो बल्ब जो अँधेरे से हमारी हिफाजत के लिए वरदान बनकर आया था हमारे अन्धाधुन्ध इस्तेमाल के कारण अभिशाप बन बैठा है |
                     कुदरत ने रात बनाई इसलिए कि उजाले की  थकान से निढाल  इंसान जानवर और पेड़ पौधे सभी रात के अँधेरे में आराम कर सकें और आने वाली सुबह के लिए अपनी ताकत वापस  पा सकें | किन्तु चकाचौंध भरी , भारी- भरकम सोडियम ,नियन,सिल्वर , मर्करी वेपर ,हाई मास्ट और बीम लाईटों ने रात को जेठ की दुपहरिया से भी ज्यादा प्रखर बना दिया है | अमेरिका  के न्यूयार्क और लासवेगास  ही नहीं अब तो दिल्ली और मुंबई भी रात को इस तरह जगर मगर रहते है की आप यदि फ्लाईट से आ रहें हो तो २०० , ३०० मील दूर से आप को  छितराई रौशनी से शहर का पता चल जायेगा | इन बड़े शहरों की छोड़ भी दें तो छोटे शहर भी अब नहीं सोते | रेल स्टेशन ,एयर पोर्ट के बारे में तो समझ आता है साधारण  बाज़ार , सड़क और चोराहों  में भी सारी रात चमकीली रौशनी बहती रहती है और  उनसे लगे घरों, होटलों में  घुसपैठिये की तरह  काबिज रही आती है कि सोने लायक अँधेरा हो ही नहीं पाता | नतीज़तन उनके वाशिंदे कब्ज से लेकर अनिद्रा, सिरदर्द चिडचिडाहट,याददास्त  में कमी  जैसी बहुतेरी बीमारियों के नाहक ही  शिकार हो जातें हैं |
                           दरअसल कुदरत से इंसान को एक खास माहौल के लिए एक खास तरह का शरीर मिला और इसकी अपनी लय है जिसे विज्ञान में सरकाडियम रिदम  कहते हैं | यह एक तरह की घड़ी है | जो हमारे मेटाबोलिज्म यानी उपापचय की क्रियाओं  और हार्मोनल रिसाव  को प्रभावित करती है | इसमें फेरफार का मतलब है शरीर की अंदुरुनी मशीनरी का उलटपुलट हो जाना | सरकाडियम रिदम हमारे सोने जागने को नियंत्रित करता है और साथ ही हमारे सोने जागाने के समय क्रम से प्रभावित भी होता है | हालिया प्रयोगों और परीक्षण से यह सिद्ध हुआ है कि नाईट शिफ्ट करने की दशा में कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है | क्योंकि ये हमारे सरकाडियम रिदम को प्रभावित करता है |  होता यह है कि सोने के दौरान हमारा शरीर की पिनिअल ग्लैंड   मेलोटोनिन नामक हार्मोन का रिसाव करती है जो एस्ट्रोजन हार्मोन को नियंत्रित करता है | चुंधियाती  बनावटी रौशनी में ये संतुलन टूट जाता है  और नतीजतन केंसर का खतरा बढ़ जाता है | सरकाडियम  रिदम हमारे शरीर के  १० से १५ % जींस को प्रभावित करता  है | यही न्यूरोइंक्रोडाइन पर भी असर डालती है जो ट्यूमर ग्रोथ को बढ़ाता है | बनावटी रौशनी की वजह से सरकाडियम रिदम पर जो बुरा असर पड़ा है उसने  ब्रेस्ट केंसर , प्रोस्टेट केंसर, हाइपर टेंशन और डाईबटीज के खतरे को बढ़ा दिया है | रौशनी जिसकी वजह से  हमारी आँखें देख पाती हैं  जब अंधाधुंध हो जाती है तो अंधे होने की वजह  भी बन जाती है | इसे बहुत करीब से  रात को हाई वे पर अनुभव किया जा सकता है जब सामने  से आती गाड़ी की तेज मरकरी बीम लाईट या glare हमें कुछ समय के लिए अंधा कर देती है | आँखों के सामने  तेज उजाला अँधेरे बादल की तरह फट पड़ता है | तेज रौशनी के कारण रेटीना पर पड़ने वाले असर को ताज़ा रिपोर्टों में देखा जा सकता है |यह ठीक वैसा ही है जैसा सूर्य की तरफ लगातार देखते रहने पर अंधेपन का होना |जिस तरह हमारी जिंदगी में शामिल तेज शोर ने हमारे  कानों को बहरेपन की सज़ा दी वैसे ही अब बारी हमारी आँखों की है| जिन्हें नष्ट हम अपनी बनाई रोशनी से करेंगें |
                       इंसान के ऊपर जो गुजरी उसकी तो कहीं कोई फरियाद भी कर सकता है  जैसा कि कैंट  जबलपुर की उस महिला ने किया भी किन्तु उन बेजुबान पेड़ पौधों  पशु पक्षियों का क्या जो हमारे  ज़ुल्म के नाहक शिकार हैं ? और न तो उनकी कोई अदालत है ना ही वकील |
                वैज्ञानिकों ने पाया कि जहाँ रात भर तेज रोशनी रही आती है वहाँ पेड़ पौधों में एक असामान्य वृद्धि होती है  किन्तु इन  पौधो में  फूल और फल दोनों ही नहीं आते यानी ये तेज बनावटी रौशनी पराग और परागण दोनों ही पर असर डालती है |
                            सबसे बुरा असर पक्षियों पर होता है | परीक्षणों में देखा  गया कि तेज बनावटी रौशनी के कारण आसपास के पक्षी लगातार चिचियाते रहते है यानी पो फटने के ठीक पहले की morning call | उनकी नींद पूरी तरह से टूटी हुई होती है और वे भोर होने के अंदेशे में सूरज के निकलने की बाट जोहते रहते है | इन पक्षियों में बांझपन भी देखा गया है | खम्बे  पेड़ या मकान दुकान के छज्जे पर तेज रौशनी में रात को बैठे किसी उल्लू या दूसरे परिंदे  को देखिये उससे बेबस  कुछ और नज़र नहीं आएगा | प्रवासी पक्षी और रात में अपना सफर तय करने वाले परिंदे तेज रौशनी के कारण अपना रास्ता भूल जाते हैं और वहाँ नहीं पहुँच पाते जहाँ उन्हें जाना था | कितने पक्षी  इस तेज रौशनी के कारण अपना रास्ता ही नहीं भूलते तात्कालिक अंधेपन की वजह से किसी खम्बे, किसी विमान या  किसी भवन से टकराकर अपनी जान गवां बैठते हैं |
            और रौशनी में सर पटक पटक कर जान गँवा देना तो पतंगों का दीवानापन है जिसके लिए वे मिसाल बतौर याद किये जाते हैं |बारिश के दिनों में एक अदने से पीले बल्ब के चारों ओर जिस तरह पतंगो  और कीट का ढेर लग जाता है उसे ख्याल कर सोचा जा सकता है कि तेज मरकरी लाईट किस तरह पतंगों को लुभाती होगी और कितने  अरब कीट पतंगे और परिंदे इस तरह नष्ट हो जाते होंगे |
                       ११ सितम्बर को न्यूयार्क में टिवन टावर की बरसी पर  रोशनी के शहतीर यानी लाईट बीम  आसमान में बनाये गए थे | यह तमाशा मासूम  लोगों को श्रद्धांजलि के नाम पर किया गया और विडम्बना देखिये कि इसने हज़ारों मासूम परिंदों की जान ले ली | लोग बताते हैं कि उस लाईट बीम की वज़ह से पक्षी  धोखा खा गए और आसमान पक्षियों  की उड़ान से भर गया | वे सारी रात चक्कर काटते रहे और गश खाकर जमीन पर गिरते रहे |
                              उन जीवों के दुःख की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती जो  रात के अँधेरे में अपना आहार जुटाते हैं | जरा उल्लूओं और सापों  के बारे में सोचें जो  तेज बनावटी रोशनी के कारण पर्याप्त अँधेरा ना होने से अपना भोजन नहीं ढूँढ पाते  और भूखे रह जाते हैं | वहीँ मकड़ियाँ अपना जाला नहीं बुन पाती | इस तरह से एक इको बैलेंस यानी पारिस्थितिक संतुलन भी टूटता है |
                  ऊँचे सिग्नल टावर और हाइपर टेंशन लाइन ने हमारी गोरैया को हमसे छीन लिया | रफ्तार के लिए बनी फोरलेन ने गिलहरियाँ छीन ली | कीटनाशक ने कोए और गिद्ध छीन लिए अब बारी उल्लूओं और उस जैसों की  है |  टोरंटो में सन २००६ में इन वजहों से समाप्त हो रही नस्लों पर एक प्रदर्शनी भी लगायी गई थी | दरअसल हमारा बनाया उजाला इन जीवों  जिंदगी का  अँधेरा है |                   
                            समुद्र  किनारे के कछुये, चूहे  आदि अपना प्रजनन और   अण्डों की सिकाई जैसे काम जिस अँधेरे में करते हैं कृतिम प्रकाश बनावटी रोशनी  से वह अँधेरा नष्ट होने से , ये सभी खतरे में हैं | परीक्षणों में  इस तरह के प्रकाश से  मेढकों की मेटिंग काल पर भी असर  देखा गया |शुक्राणुओं में कमी से लेकर पुंसत्वहरण  के संकेत भी मिलते हैं| | ये सभी संकेत उस खतरनाक दिशा को दिखा रहे हैं , जिस ओर हमारा अन्धा विकास हमें ले जा रहा है|
                       जहाँ एक तरफ हम कुदरती भंडार के तेज़ी से हो रहे सफाये को लेकर परेशान हैं वहीँ ये बात हमें नहीं दिखाई देती कि  शहर और उसकी बिल्डिंगों को जगमगाने वाली भयंकर रौशनी से हम किस तरह अपने उर्जा भण्डार को  रफ़्तार से खत्म रहें हैं |ब ड़ी बड़ी लाइटों से ग्रीन हाउस गैसों का  उत्सर्जन भी बढ़ा है जो चिंता की वजह है |
                     उस पर सितम ये है कि एक तरफ महानगरों में रोशनी का सैलाब है और दूसरी तरफ गावों का २ तिहाई हिंदुस्तान अँधेरे की चपेट में है | वहाँ लाईट की आंखमिचोली हलाकान किये है |ये ज़बरदस्त ऊँचनीच हमारे विकास का कड़वा सच है | एक तरह से यह आपराधिक अपव्यय भी  है|                       
           आज से सभी बातें किसी पर्यावरणवादी की   एक सनक लग सकती हैं और इन्हें विकास विरोधी समझा जा सकता है  किन्तु देर सबेर इस लापरवाही की हमें  भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है | अतः समय रहते आँख का खुलना और  तेज बनावटी रोशनियों का बुझना बहुत ज़रूरी है और इसकी शुरुआत हमें अपने घर और मोहल्ले से करनी होगी |
                हम इतना तो कर ही सकते हैं कि  एल. सी.डी. बल्व  और बाहर की बत्तियों  का इस्तेमाल बिना ज़रूरत न करें | अपने स्थानीय जन प्रतिनिधियों को समझायें की शहर को उजाले  की ज़रूरत है  क़ातिल उजालें की नहीं | इस से पहले की उजाले का ज़लज़ला  हमारा अँधेरा  बन जाए और हमारी आनेवाली नस्ल  अँधेरे के उजाले के लिए तरशने लगे | हमें गहराई से सोचना और तत्परता से कुछ करना होगा ||