निरा
मल बा बा
ईश्वर कृपा प्राप्त
अवतारी बाबा रातों रात निरा मल बा बा हो गया है|तीसरी आँख रूपी गुब्बारे में पहले हवा भरने के बाद देश का स्वयम्भू मुंसिफ मीडिया अब उसे पिन चुभो रहा है | बाबा कि करतूतों का कच्चा
चिठ्ठा खुलता और उड़ता जा रहा है|अपने द्वारा तैयार किये जिन्न को अब मीडिया
आप ही बोतल में बंद करना चाहता है|
कल तक जो चैनल मोटी फीस लेकर विज्ञापन
में बाबा के चमत्कार का ढोल पीट रहे थे वे
ही अब ढोल कि पोल खोल कर टी. आर. पी. बढ़ा रहे हैं ,यानी चित्त भी मेरी पट भी मेरी अंटा मेरे बाप का |
आज मीडिया जिस पर पत्थर उछाल
रहा है कल उसी पर फूल चढ़ा रहा था बगैर मीडिया के मैनेज हुये झूठ और पाखंड का इतना
बड़ा कारोबार खड़ा नही किया जा सकता | मीडिया का तब शुरूआती एथिक्स तवायफी होता है यानी ग्राहक कि पूर्ण संतुष्टि| सामाजिक सरोकार किस चिड़िया का
नाम है तब वह नहीं जानता | अचानक मीडिया
को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होता है और वह अपनी बनायीं मूर्तियां ही तोडने
लगता है| मूर्ति सृजन और मूर्ति भंजन दोनों ही दशाओं में मीडिया का कारोबार ही बढ़ता
है| आज भी आस्था, संस्कार ,प्रज्ञा और
दिव्य दर्शन को तो छोडिये समाजिक चेतना और सरोकार की माला जपने वाले न्यूज चैनलों में भी तंत्र
मन्त्र भस्म भभूत बेचते बाबा जमे हुये हैं|
रसोई कि दिशा बदलने पर
प्रमोशन और बिंदी का रंग बदलने पर
ससुराल के प्रेम की गारंटी बेचते वास्तुशास्त्री तो वहाँ
वैज्ञानिकों बुद्धिजीवियों की कतार में
हैं| तो आज जागा हुआ मीडिया कब सो
जायेगा कहा नहीं जा सकता|
लेकिन मीडिया ने अभी बाबा के कारनामो का खुलासा करके मेरे ज़ेहन
में यादों की टयूब लाइट जला दी है| एक भाड़े का टट्टू जब टी.वी. में बता रहा था कि बाबा अपने शो में उसे और उस जैसे भाड़े के टट्टुओं से पहले से तैयार स्क्रिप्ट
अनुसार तारीफ़ का स्वांग करवाता था | तो
मुझे बचपने में देखा मदारी का मज़मा याद आ गया कि कैसे उस्ताद ने कहा था कि लोग जेब
से हाथ निकाल लें या मुठ्ठी खोल लें वर्ना उनका ...[अंग विशेष ].. गायब हो
जायेगा और कुछ देर में भीड़ में से एक आदमी रोने लगता है और .... अपना अंग
विशेष वापस पाने की चिरौरी करने लगता है |
आप में सभी ने सिद्ध बैल से लेकर सांडे के तेल
वाले का कोई न कोई मज़मा कभी न कभी देखा सुना होगा | बीस का नोट किसकी जेब
में है? पूछने पर बैल पहले ही से बताकर खड़े किये गये आदमी के पास जाकर रुकता है
...और वह आदमी अभिनय की सबसे अच्छी
पाठशाला को भी शर्मिंदा कर सकने वाले अभिनय के साथ दंडवत हो जाता है | सतना में
हमें चाय पिलाने वाला बताता था कि सांडे के तेल वाला उसे मज़मा ज़माने और फिर तेल
खरीदने के लिये कितने रुपये देता है | नागपंचमी का तान्त्रिको का फिक्स ड्रामा
जिसने नहीं देखा उसने हिंदुस्तान नहीं
देखा | चलिये नहीं देखा ना सही हमारे आज के इन बाबाओं को ही देखिये ये उत्तर आधुनिक
मदारी है | हाई टेक मज़मेबाज़ हैं| प्रबंधन की चालाकियों से संपन्न, मिडिया
विभूषित भव्य मोहक चार सो बीस ठग हैं | एक विशालकाय अज़गर जिसके पेट में
हिन्दुस्तान का ज्ञान विज्ञान बुद्द्धिजीवी से श्रमजीवी सभी समा गये हैं|
किन्तु कलेंडर की शक्ल में देवी देवताओं से ज्यादा
बिकने और दौ कोड़ी के दिखने वाले इस बाबा या मीडिया को कोसने भर से कुछ नहीं होने का
जब तक हमारे मन में अँधियारा छाया रहता है| और ये अँधियारा लेकर ही आम
हिन्दुस्तानी बच्चा अपने परिवार में बड़ा होता है.. शनिवार को बाल नहीं कटाने हैं,
मंगलवार को दाढ़ी नहीं बनानी है गुरुवार को धोबी नहीं आना चाहिये ,बुधवार को पूरब कि यात्रा नहीं करनी है.... यहाँ आप अपनी पसंद
की सूचि बना सकते हैं.. और नतीजतन देश का डाक्टर छीक आने पर या बिल्ली के रास्ता
काटने पर इमरजेंसी छोड़ बीच रास्ते से लौट आता है | अंतरिक्ष वैज्ञानिक
पंचांग के महूर्त अनुसार रॉकेट लांच
करता है जो हिंद महासागर में डुबकी लगा
बैठता है | देश के ऑफिसों में अधिकारी की टेबिल के नीचे राहु कालम दबा होता है ...ये दीगर बात की इन ऑफिसों में राहू केतु शनि ही मंडराते रहते हैं|दरअसल आम भारतीय दिमाग पर कोई
लोड लेना ही नहीं चाहता ...समस्याओं के सामजिक, आर्थिक ,राजनैतिक'शारीरिक और मनोवैज्ञानिक
कारण होते हैं ये सोचने समझने की झंझट में वह नहीं पड़ता वह बस झटपट सस्ता सुन्दर
टिकाऊ उपाय चाहता है | वह नकसीर के इलाज से लेकर मोक्ष तक सब कुछ बिना हींग फिटकरी लगे चाहता है| ..और ऐसे में बाबाजी
बहुत मुफीद हैं ..पीपल में एक लोटा पानी
या काले कुत्ते को एक रोटी या हरे रंग से बेड रूम की दीवार रंगने से वो सब हो जाना है जो जो चाहा गया है और
जिसे ना देश की अदालत दे पायी है ना अस्पताल
ना संविधान दे पाया है | इस देश
में कोर्स की किताबों के बाद सबसे अधिक बिकने वाली किताबों में है, काली किताब
,लाल किताब, चिंताहरण जंत्री और रामशलाका..यह कैसी पहेली है कि देश में जैसे जैसे ज्यादा डाक्टर ,इंजिनियर और वैज्ञानिक तैयार हुए वैसे वैसे देश मूढ़ मगज और दकियानूस होता गया| तो क्या इसे यूँ समझें कि विज्ञान विवेक का शत्रु है ? वैसे यह भी सच है कि तकनीकी ज्ञान के साथ विवेक और वैज्ञानिक बुद्धि भी आप ही बढ़ जायेगी ऐसा सोचना निरी शिशुवत आशावादिता थी |हमने देश के भीतर तकनीकी ज्ञान के बरक्स वैज्ञानिक चिंतन की अकादमी और शाला स्तर पर जो अवहेलना की वह मात्र प्रमाद था या किसी दूरगामी षड्यंत्र का हिस्सा यह आज भी शोध का विषय है | जो भी हो उचित प्रशिक्षण के आभाव में हमारे देश के व्यस्क का मन आज भी हेरी
पोटर के बच्चे की तरह जादुई दुनिया में असल दुनिया की समस्याओं का समाधान तलाशता
है| यही है बाबावाद कि पृष्ठभूमि |
हम जादू पर यकीन करने वाले
साइबर युग में जीते पढ़े लिखे मूर्खता की हद तक भोलेभाले लोग हैं और यही बने
रहना चाहते हैं.|.मेरे एक मित्र गर्म पानी के जादू से इस कदर जले हुये हैं कि जब
भी मिलेंगे गर्म पानी का गरारा करते मिलेंगें| पैर में दर्द तो गर्म पानी,सर में
दर्द तो गर्म पानी | दस्त में गर्म पानी तो कब्ज में गर्म पानी|शरीर तो छोड़िये देश दुनिया के हर मर्ज़ को वे गर्म पानी में गर्क कर देते हैं| वे भारत पाकिस्तान के बीच का मसला भी ज़रदारी साहब को गर्म पानी पिलाकर निकाल दें| गोया ईश्वर मुर्ख था उसने
पानी ठंडा बनाया ही क्यों?आप गर्म पानी कि जगह कुछ और अपनी सुविधा से रख सकते हैं जैसे आल टाइम सुपरहिट प्राणायाम या साईबाबा को पीले
लड्डू का प्रसाद |हमें सबकुछ इंस्टंट चाहिये वो भी बिना रिस्क | तो फिर बाबा जी हैं ना ....| अब कुछ समाधान तो आप
ही हो जाते है समय के साथ| क्योंकि एक इंसान ही समस्याओं से परेशान नहीं होता
समस्याएं भी इंसान से परेशान हो जाती है|
जिसे मेडिकल साइंस में प्लेसबो इफेक्ट कहते हैं | इस प्लेसबो इफेक्ट से कुछ
हुआ तो वाह वाही बाबा की नहीं हुआ तो गडबडी यजमान की ..फिर चढाओ दौ हज़ार का प्रसाद
|द लेकिन आप किसी से कुछ कह नहीं सकते क्योंकि उनकी भावनायें आहत हो सकती हैं| आहत भावनाओं का यही डर चोला ओढे
४२० के खिलाफ कुछ कहने से कई बार रोक लेता है परिणामतः धीरेन्द्रब्रम्चारी से शिवानंद
तक पवित्र वेश में अपराधियों की फौज तैयार
होती रहती है| बड़े बड़े मठों में घिनौने अपराधों
के फरार अपराधी पवित्र चोला के आढ में छुपे हुये हैं और हम हैं कि उनके सामने बिछे जाते हैं |
यहाँ दंगे हो
और दंगो का अपराधी दयालु नेता बन जाये या बलात्कारी नारी मुक्ति का चैम्पियन या सेंसेक्स के साथ साथ गरीबी भी बढती जाये तो लोगों कि भावनाएं आहत नहीं होती किन्तु आप ने
सच कहा और परदे गिरे या मुखौटे उतरे तो भावनाएं आहत हुईं | ऐसी भावनाओं के लिये बेहतर
है कि वे हिमालय जाकर जरा तफरी कर आयें |
और इस बीच देश के नौज़वानों को चाहिये कि वे बाबाओं के मज़मे
के बाहर अपना मज़मा लगाएं और ताली पीट पीट कर बतायें कि ये नहीं बाबा नहीं बल्कि बाबा जी का .xxx.. हैं| यही
एकमात्र रास्ता है जो उम्मीद और उजाले कि तरफ जाता है |
हनुमंत