आ फिर
से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
मेहँदी हसन ने आखिर वादा तोड़ ही दिया और अपनी
आवाज़ को हमेशा के लिए खामोश कर गए |इंतज़ार रहा कि इस बार
भी १३ जनवरी २०१२ जैसा कुछ हो जायेगा और खबर आयेगी कि शहंशाहे गज़ल की मौत की खबर झूठी
थी | मगर इस बार १३ जनवरी नहीं दोहराई जा सकी और गज़ल का सबसे हसीन अंदाज़ हमेशा के जुदा
हो गया | ये और बात कि खला में
जब तक मौशकी जिंदा रहेगी वो आवाज़ वो अंदाज़
जिंदा रहेगा |
जिस दिन ये मनहूस खबर आयी मैं अपने काम में इस क़दर मशरूफ रहा की मेहँदी को ठीक
से याद भी न कर सका और फिर उस दिन देर रात
बारिश की कुछ फुहारें आईं| और मन और मौसम सब कुछ
रूमानी सा हो गया |
मेहँदी का गाना भी चुभती चिपचिपाती गर्मी
में फुहार की तरह लगता है | या भरे ट्रेफिक के
दौरान हवा के झोकों से वाटर फौंटेन की बौछार आपको तर कर देती है कुछ कुछ वैसा |
अब मेहँदी के लिए ये सब मिसालें बहुत मामूली हैं | फैज़ और फ़राज़ जैसे शाइर जिसके लबों पर आकर अपनी पहचान को मेहँदी की पहचान में गुम
कर देना अपनी खुश किस्मती समझते थे |
फैज़ अपनी “गुलों में रंग भरे
वादेनौबहार चले “ वाली गज़ल को मेहँदी
की गज़ल कहते और यह भी कहते कि बेहतर हो उसे आप उन्ही से
सुने |
मेहँदी हिन्दुस्तानी गंगा जमुनी तहजीब के
वो मोती थे जो हिन्दुस्तानी दरिया से बहकर पाकिस्तानी झील में चला गया |कलावंत संगीतकारों की वे १६ पीढी से थे |ध्रुपद, ख्याल ठुमरी
की उन्होंने तालीम अपने अब्बा हुजुर से पाई और आजादी में मिले बंटवारे के कारण अपनी मादर ज़मी
लूना राजस्थान के छोडकर उन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा | लेकिन उन्हें सरहद न बाँध सकी और वे सरहद को अपनी आवाज़ से तार
तार करते रहे |उन्होंने पंजाबी , बंगला,और पश्तो में भी गाया
और हिन्दुस्तान पाकिस्तान बंगलादेश सबमे बराबर धड़कते रहे | यहाँ तक की नेपाल ने भी
उन्हे नवाज़ा | वो सही अर्थों में भारतीय महाद्वीप की जान और पहचान थे | आज उसी मेहँदी और मंटो की दरकार है |
जो सियासी सरहद को बेमानी कर दें और इंसानियत को एक मज़हब एक
रूह बना दे | मौशकी शायरी मोहब्बत से भरी |
मैं हमेशा मेहँदी के जिन्दगीनामे में एक बात
बहुत मुतासिर रहा |वो था संगीत को लेकर उनका जूनून और हौसला | तंग जेब वाले दिनों में
उन्होंने सायकिल दुकान पर काम किया | कार और डीजल इंजिन के मेकेनिक बने मगर सुर और
रियाज़ का दामन थामे रखा और गज़ल की शमा की लौ आसमान तक ऊँची उठा दी | और जब वे फर्श
से अर्श पर पहुँचे तो भी अपने कदम और मिजाज़ ज़मीन पर ही रखे | एक बार का वाकया है जब गाते हुए
हारमोनियम पर कुछ खराबी आन पड़ी तो वे खुद उसकी
मरम्मत करने लगे और जब लोग घेरकर उन्हें हैरत से देख रहे थे तो मेहँदी मुस्कुराते हुए
बोले कि इसकी मरम्मत तो उन इंजनों से बहुत आसान है जो पहले किया करता था |
मुझे मेंहदी के जाने का एक निजी नुकसान है
कि अब मैं पाल टॉक पर उनका कोई नया गीत\ गज़ल नहीं बजा
पाऊंगा | पाल टॉक में मैंने उनके और सिर्फ उनके गाने
इतने बजाये कि मेरे दोस्त मुझे मेहँदी वाला गाना कहकर चिढाने ही लगे थे |
बहुत दिनों तक हर रात मैं उनके तीन गाने बिना
नागा सुनता था एक "तुने ये फूल जो जुल्फों में सजा रक्खा है" | दूसरा " चरागे तूर जलाओ बहुत अँधेरा है " और तीसरी
उनकी हीर |
दिल में कितना भी अँधेरा और
उदासी रही ...मेंहदी को सुनने के बाद जी हल्का हो लिया | लगा कि जिंदगी में अभी बहुत कुछ बाकी है जिससे मोहब्बत की जा सकती है |
मेहँदी के गाने अवाम और क्लास दोनों में मकबूल रहे |उन्होंने
पापुलर फ़िल्मी या शाइरी के लिहाज़ से हल्के
गाने भी गाये मगर सुर और संगीत के साथ समझौता नहीं किया | ऐसा कितने कर पाते हैं |
बहुत कम लोगों को उनके पहले नाम से
बुलाने का साहस कर पता हूँ ..मुझे ये हक मेहँदी ने नहीं दिया ये मेरी मोहब्बत ने छीना
है | वर्ना मेरी मज़ाल की मैं गज़ल के शहंशाह को नाम से ही नहीं थोड़े बिगड़े हुए नाम से भी बुलाऊँ |मगर मोहब्बत
में ये हौसला आता है जो मुझमे है|
मेहदी को मैंने अनजाने में मेहँदी बुलाना शुरू किया था जब जानने लायक हुआ तो मुझे
मेहदी की जगह मेहँदी ज्यादा मुफीक लगा दो कारणों से अव्वल तो जैसे मेहँदी जितना पीसो उतना रचती है सो
मेहदी भी जिस तरह बंदिश की खिराद पर सुर लगाते है और वह हमारे दिलों में रच जाती है और दूसरे
जिस तरह मेहँदी हर मौसम में हरी और ताज़ा रहती है तथा आम औ खास हर मौके पर हर एक का शगुन होती
है, वैसे ही मेहदी की गज़ल भी आम औ खास सभी में मकबूल हुई| हर मौके पर उसका एहतराम हुआ .... सो
मैंने मेहदी को बामुहब्ब्त मेहँदी पुकारा है|मेरा इरादा नाम बिगाड़ने या मज़ाक उड़ाने का किसी तई नही है |फिर भी किसी का दिल दुखे तो माफी चाहूँगा |
मेहदी को मैंने अनजाने में मेहँदी बुलाना शुरू किया था जब जानने लायक हुआ तो मुझे
मेहदी की जगह मेहँदी ज्यादा मुफीक लगा दो कारणों से अव्वल तो जैसे मेहँदी जितना पीसो उतना रचती है सो
मेहदी भी जिस तरह बंदिश की खिराद पर सुर लगाते है और वह हमारे दिलों में रच जाती है और दूसरे
जिस तरह मेहँदी हर मौसम में हरी और ताज़ा रहती है तथा आम औ खास हर मौके पर हर एक का शगुन होती
है, वैसे ही मेहदी की गज़ल भी आम औ खास सभी में मकबूल हुई| हर मौके पर उसका एहतराम हुआ .... सो
मैंने मेहदी को बामुहब्ब्त मेहँदी पुकारा है|मेरा इरादा नाम बिगाड़ने या मज़ाक उड़ाने का किसी तई नही है |फिर भी किसी का दिल दुखे तो माफी चाहूँगा |
मुझे संगीत की समझ न के बराबर है गाने या
बजाने का ताब और तमीज बिलकुल नहीं है| फिर
भी मेहँदी को सुनता हूँ तो इसलिए कि लगता है वो आवाज़ मेरे दिल ही से निकल रही है और
अक्सर ये भी लगता कि जैसे वो मेरे लिए गा रहा है | लता ताई ने कहा था कि उनकी आवाज़ में ईश्वर गाता
था | झूँठ ऐसी आवाज़ में सिर्फ इन्सान गा सकता था और ईश्वर इस बात
पर रश्क कर सकता था कि वह इन्सान क्यों न हुआ |
मेहँदी का जिस्म सुपुर्दे खाक हो गया ..... किन्तु मेंहदी नाम की रूह ताकयामत इन्सानी
ज़ज्बात और अहसासात को तराना और तरन्नुम की शक्ल में गाती और गुनगुनाती रहेगी|
मेहँदी
की अवाज़ ही मेहँदी का होना है और उसे कोई मौत हमसे जुदा नहीं कर सकती |