Saturday, February 9, 2013

लघुकथा


शव साधक और ईश्वर का राज्य : एक रूपक
दिया गया )
जो मनहूसियत आज आप यहाँ देख रहें हैं ,कभी वहाँ भरपूर जिंदगी थी  |
खिलते फूल थे | चहकते पंछी थे | खेलते बच्चे थे |काम करती जवानियाँ थी |
मतलब एक हँसती खेलती बस्ती थी |
फिर किसी मनहूस घड़ी मरघट से एक  शव साधक बस्ती में घुस आया |
उसने कहा ईश्वर ने उसे बस्ती में ईश्वर का राज्य कायम करने के लिए भेजा है  |
बस्ती वाले अजूबों का बड़ा आदर करते थे |
लिहाजा वे इस अजूबे के झाँसे में आसानी से आ गये |
शव साधक ने पहले तो  फूलों के खिलने पर पहरे बिठा दिये |
फिर पंछियों को हुकुम दिया कि वे चहचहा कर लोगों को गुमराह ना करें |
तितलियों के उड़ने पर यह कहकर पाबंदी लगा दी कि वे विषय भोग को बढ़ाती हैं | 
बच्चों की मासूमियत को गुनाह बताया गया |
और बस्ती धीरे धीरे एक मरघट में बदलने लगी  |
पर लोग आकाश की राह तकते रहे कि ईश्वर का राज्य अब उतरा तब उतरा |
किस्मत से एक फकीर उस राह से गुजरा और ये सब देखकर बैचेन हो रहा कि ईश्वर का राज कायम करने निकले लोग शैतान के राज में जा पहुँचे थे |
उसने बस्ती वालों को इसके लिए राजी किया कि वे पहाडो के पार चलकर एक झलक ईश्वर के राज्य की देखें |
लोगों ने देखा कि ईश्वर के राज्य में फूल खिले हुए हैं, पक्षी गा रहें है ,तितलियाँ झूम रही हैं, जवानियाँ खेतों कारखानों में काम कर रही हैं|
स्वयम ईश्वर बच्चों के साथ खेल रहा है |
लोगों ने इस बात पर स्वयं को ठगा महसूस किया कि वे एक शैतान के बहकावे में आकर नाहक ईश्वर के राज्य को मरघट में बदल बैठे |
वे अपनी बस्ती को शव साधक से मुक्त कराने की ठान कर वापस लौटे लेकिन शव साधक अपना अंत देख ...कहीं छुप गया ...
उपासना स्थल के रास्ते पर कुछ खून के निशान मिले हैं मुमकिन है वो वहीँ कही छुपा होगा ....|||....
 ( चित्र : लड़कियों का बैंड सौजन्य गूगल )