Thursday, September 6, 2012

परसाई की लात और परसाई के क्लोन



परसाई की लात




वो धार्मिक था और मजबूरी में सीधा साधा भी |
होता यूँ कि आये दिन कोई भी उसे बात बेबात मंदिर के घंटे की तरह बजा देता |
उसने ईश्वर से शिकायत की और सिफारिश भी कि  हे ईश्वर जिस तरह कछुए , घोंघे वगैरा को तूने खोल दी मुझे भी दे देता तो कम अस कम बजाये  जाने के पहले खोल में घुसकर तो  बच जाता | ईश्वर ने समझाया कि मैंने तुम्हे खोल से भी ताकतवर रीढ़ की हड्डी दी है | जब ऐसा मौका आये तो तनकर मुकाबला करों | किन्तु सीधे साधे आदमी फ़रियाद जारी रखी | हार कर ईश्वर ने कहा अच्छा तुम्हारी रीढ़ को  लचीला बना देता हूँ ...खतरा आने पर तुम चाहो तो झुक सकते हो  इस तरह खतरा टल जायेगा | फिर आदमी की तरह सीधे हो जाना |
                 कुछ दिनों बाद ईश्वर ने देखा आदमी दुहरा तिहरा होकर गोल गठरी की तरह पडा था सीधा होने ही भूल चुका था | नारद ने सलाह दी कि गठरी नुमा आदमी को लात मारकर जगाया जाये तो शायद फिर से आदमी बन सकता है | सलाह पर ईश्वर ने लत भंजन में माहिर हरिशंकर परसाई को इस काम पर भेजा | परसाई ने लात जमायी लेकिन नतीजा सिफर रहा |तो  उन्होंने जोर से लात  जमायी लेकिन गठरी नुमा आदमी तो सीधा न हुआ अलबत्ता परसाई ने  अपनी टांग तुडवाकर खाट पकड़ ली |

                  उधर अपनी सबसे शानदार रचना आदमी का यह रूप देखकर ईश्वर ने  इतनी जोर से माथा पीट लिया कि खुद दिमाग से चल गया |||...
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परसाई और उनके क्लोन
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विज्ञान ने 'क्लोन ' का आविष्कार बहुत बाद में किया , वहाँ से बहुत पहले साहित्य में 'क्लोन' तैयार हो चुके थे | यहाँ कमाल यह है कि गुरु अपने क्लोन नहीं बनाता चेले स्वयं को गुरु का क्लोन बना लेते हैं ......जैसे विज्ञान में एक सेल एक क्लोन के लिए काफी होता है वैसे ही ये क्लोन अपने गुरु की एक रचना या उसकी एक लाइन पढ़कर तैयार हो जाते हैं ..और कुछ ने तो एक शब्द भी नहीं पढ़ा होता उनके लिए तो बस गुरु का नाम ही साक्षात नारायण स्वरूप है ....
साहित्य में 'क्लोन ' नही विरासत होती है ...और विरासत को पाने वाला उसे वहां से आगे ले जाता है जहाँ उसने उसे प्राप्त किया था ...पर इसमें जोखिम ज्यादा है जिससे बचने के लिए क्लोनिकरण आसान तरीका है ..इसीलिए बोड़री की राख छूटने से पहले ही सद्य प्रसूत सहित्य सेवी स्वयम को परसाई,प्रेमचंद या मुक्तिबोध का 'क्लोन' बना लेते है लेकिन जैसे ईश्वर के पुत्रों ने बाद में ईश्वर के अंत कर दिया ...वैसे ही ये क्लोन'अपने 'ओरिजनल ' की हत्या कर देते है ...वे उसकी नज़र को इतना कुंद करते चलते है कि रुढिभंजक परसाई को स्वयं एक रुढि बना देते है ...
यह क्लोनिकरण की विडम्बना ही कही जायेगी कि जिस परसाई ने कभी खुद 'पुण्य स्मरण' का विरोध कर आलोचनात्मक स्मरण की राह का अन्वेषण किया था उसी परसाई का 'पुण्य स्मरण' कर उनके 'क्लोन' पुण्य बटोर कर अपनी दोनों दुनिया सवारने में लिप्त हैं ...
यह अब क्लोनो को तय करना है कि वे अपने काकून में रहकर नष्ट हो जाना चाहेंगे या उसे बेधकर एक नये ताने बाने का कच्चा माल बनना चाहेंगे ....वैसे वो जो भी तय करे ...यह तय कि इतिहास की धारा सारे कचरे को किनारे कर देगी ....उसमे सिर्फ वही बचा रह जायेगा जो निर्माल्य होगा ....|||